पहल - ९२

वह कदम-दर-कदम दूर जाती रहती।

कुछ दूर जाने के बाद छींट के फूल

धुंधले दिखने लगते, और फिर दिखना

बंद हो जाते। लेकिन उसकी खुशबू

महसूस होती रहती थी। वह आगे बढ़ती,

बढ़ती ही जाती। जैसे जैसे आगे

बढ़ती जाती, उसके और बुद्धा के बीच

सांझ का धुंधलका भरता जाता। धुंधलके

में जाती भेड़ वाली बुद्धा को यूं लगती

मानो वह सांध्य नदी में उतर रही हो।

      - सत्यनारायण पटेल की कहानी

            'रंगरूट' का एक दृश्य

 

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