काट-कपचकर बनी 'खुशियों की चाबी'
ये बच्चे जो बैलून लिए उड़ रहे हैं सातवें आसमान पर यह '24 गुने 30 घंटे' मैं तैयार खुशियों के सूरजमुखी है जानते है आप यह उस तीस रुपए की देन हैं जो महेश जी ने बस कंडक्टर से कितने थुक्कम-फजीहत के बाद बचाया था भाड़ा कम लगे इसलिए पूरे सफर खड़े आए या जेठ की भरी दुपहरी छत पर बैठकर सफर किया कुछ-कुछ दूरी पैदल चल आटो भाड़े से कुछ-कुछ थाती बचाई
और यह जो कमल के बच्चे डिज्नीलैंड में दस टकिया झूलों पर हवाखोरी करते आसमान की छतों को छू रहे हैं? वे दस टकिया आसमान से नहीं टपक गये उनकी हथेली पर किसी से सलामी में यह रकम नहीं गिरी जेब में कभी दूध कम लेने से बची रकम है यह तो राशन में कभी कुछ कम, कुछ सस्ता लेकर अरमानों का यह गुलदस्ता जुटाया
नाक से होकर सीधे अंतडिय़ों को भेद रही जो घर की दरो-दीवार को फाड़कर जैसे पार कर जाएंगी सात समंदर बता सकते हैं सरसों वाली मछली की यह महमह गंध मुन्ना के यहां कब समाई? जानते हैं यह पाव भर मछली की सेंधमारी के किस्से? कुछ चीनी, कुछ दाल, कुछ तेल, कुछ मसाला, कुछ साबुन की खपत में कटौती का फल है यह कितने दिनों पकी मिर्च के साथ नून-तेल रोटी खाई और फिर कुटिया+का यह अवतार हुआ है थालियों में
और जानते हैं आम किस तरह बिराजा है बिरजू के घर में एक राजा की चरणधूलि की तरह सभी उस 'बखरा'++को पाकर धन्य-धन्य हो उठे हैं जब तक अंतिम कौर सांस लेता है थालियों में टुकड़ी में किनारे उठती रहती है आम की वह जिद्दी धधकती लौ
ढिबरी-लालटेन की नीम उजास में बेटी की अठखेली देखकर कितना मुदित हुए थे कमलेश जी जानना चाहेंगे निमाई बाऊरी के घर में उसी वक्त मोमबत्ती से कैसे फैला था अंधकार आपके उजालों की कोख में किसके कोटे का किरासन आया कौन बताएगा किन अंधेरों में इच्छाओं का गर्भपात और जरूरतों से बलात्कार होता रहा है
और जानते हैं अरसे बाद कितना तो रोमांस जगा उस रविवार को चमचमाते पार्कमार्केट की हसीन गोद में गुपचुप (पानीपुरी) खिलाया बीवी को आप पूछिए कहां से भरा खुशियों का यह ब्लड बैंक साहब यह सब्जीवालों और रिक्शावालों से मोल-तोल में बचाई गई रकम है उनका खून, नमक मिला पसीना कैसे आ गया हमारी रगों में!
क्या करूं ध्यानेंद्र भाई, खटते लोगों के श्रम से चुरायी गई रकम मेरी भी जेब में खांसती है
+ मिथिला जनपद में मछली के छोटे टुकड़े को कुटिया कहते हैं ++ मिथिला जनपद में हिस्सा या भाग को बखरा कहते हैं
जी लेना फिर कभी (मानवाधिकार कार्यकर्ता साथी ग्लैडसन डुंगडुंग के लिए)
ये जो बीहड़ जंगल में, पहाड़ में अनाज का दाना ढूंढते हैं और पीते हैं चुआं, डबरी, जोरिया+से असंख्य कीटाणुओं वाला पानी वे हमारे सरकार हैं, मुख्तार हैं; उन्हें नहीं मालूम
जिन मांओं ने दाल नहीं देखीं, उसका पीलापन नहीं देखा और नहीं आया मन में कभी प्रसव बाद मालिश का ख्याल उन देवियों के सूखे झूलते जीवन-कोष में कितना दूध जुटता होगा अभी-अभी धरती पर टपके गीदड़++के लिए गोद में ही मांड़-भात और उबले घोंघे के स्वाद का फर्क जान जाते हैं वे बाल भगवान
गांव भर का ढोर-डांगर वीराने में चराते हैं सपनों की तरह तब जो उनके बंजर सपनों से रोटी आती है बाहर और काले साबुन से धोया धोती का टुकड़ा और जालीदार बुश्शर्ट पहनकर भोज जाते हैं उन्होंने भी जरूर देखा होगा भटकते सपनों में गीदड़ को पढ़ते-लिखते
अचानक परदे पर कंचियाई आंखों में खून दीखने लगता है सभ्यता और विकास के लिए बड़े खूंखार हो उठते हैं ये गंधाते लोग जिन पीलियाए दांतों को सड़ा चना नसीब नहीं वे लोहे चबा रहे हैं वे गोलियां खा रहे हैं, बारूद से उड़ाए जा रहे हैं
हे सभ्यता के असभ्य जन, यह तुम्हारा वक्त नहीं नींद में खलल मत डालो मिट्टी में मिट जाओ, पहाड़ में समा जाओ, नदी में दह जाओ जाओ, जी लेना फिर कभी (21.07.2012)
+ झारखंड के पिछड़े इलाकों में पेयजल के विविध स्रोत ++ झारखंड में आम बोलचाल में बच्चे को गीदड़ बोलते हैं
बीजापुर जिला के कोट्टागुडा गांव में 28 जून 2012 को सीआरपीएफ ने निहत्थे ग्रामीणों की बैठक पर गोलियों की बौछार की। इसी नरसंहार में मारे गए 20 बेगुनाह आदिवासियों की याद में। भाई ग्लैडसन डुंगडुंग ने केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम को इस संदर्भ में एक पत्र भी लिखा था। |