किताब मंज़र, किताब चेहरे किताब फूलों से आशनाई किताब ही ज़ेहन की तरावट किताब ही वज्हे-दिल रूबाई किताब ही इब्तिदा मेरी किताब ही आख़िरी कमाई जहान की उलझनों से मैंने किताब ही मैं पनाह पाई।
किताब ही ने जबान बख्शी किताब ही ने खमोशियों की अदा सिखाई किताब ही सिलसिले उमीदों के जोड़ती है किताब ही सरहदों के बंधन को तोड़ती है किताब ही वज्हे ख़्वाब लेकिन किताब ही नींद से मुसलसल झिंझोड़ती है। मुझे किताबों में दफ़्न करना!
बदन के नीचे भी हों किताबें बदन के ऊपर भी हों किताबें किताबें दाएँ किताबें बाएँ लहद1 कुछ इस तौर से सजाना फ़क़त किताबों का हो सरहाना।
किताबें ही मेरा मुँह छिपाएँ किताबें क़त्बे2 के काम आएँ अगर कभी क़ब्र के फ़रिश्ते करेंगे कोई सवाल मुझसे गए दिनों का हिसाब लेंगे मैं चुप रहूँगा मिरी किताबें जवाब देंगी।
1. कब्र, 2. समाधि लेख
'शबख़ून' -283 इलाहाबाद से साभार। |