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सितम्बर - 2018

जिव्या सोमा मशे : आदि भारतीय परंपरा का कलाकर्मी

सलील वाघ / अनुवाद : निशिकांत ठकार

निधन/वारली चित्रकला शैली के निर्माता

 

 

 

कर्नाटक का हल्लागुल्ला और शोरशराबा जब समाचार माध्यमों में रगड़ा जा रहा था तब जिव्या चल बसा। दूरदर्शन पर उसका छोटा-सा समाचार दिखाया गया जो हमारे पूरे सामाजिक बौद्धिकों को शोभा देने वाला ही कहा जायेगा। और फिर जिस समय सिर्फ कुछ गिने चुनों की अनुदान ऐय्याशी को पोसने के लिए बेहद घटिया दर्जे के गांव फिनाले मनाये जाते हैं ऐसे कालखण्ड में जिव्या जैसा तापस चित्रकर्मी गुजरा हो इस बात पर कल बताने पर भी कोई भरोसा नहीं करेगा। विगत शताब्दी में भारत में जो चित्रकार श्रेष्ठ और विशिष्ट थे उनमें जिव्या का समावेश नितांत आवश्यक हो जाता है। जिव्या जिस आधुनिक और कथित उत्तर आधुनिक समय में जिया उस आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता की हवा से वह पूरी तरह अछूता रहा। इसीलिए उसके काम का आकलन बेहद पेचीदा और चुनौती भरा साबित होगा।

कला का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन कला का अवश्य ही अपना कलाधर्म होता है। कला में कलाधर्म प्रक्षेपित होता हैं। किसी भी धर्म की तीन बुनियादी बातों होती हैं, दर्शन, मिथक और कर्मकाण्ड। ऐसा नहीं है कि किसी एक आध फुटकर कलाकृति से कलाकर्म की प्रतीति होगी। इसके लिए कलाकार के समग्र का, कई कलाकृतियों का एक साथ जायजा लेना होगा। जिव्या और उसकी 'वारलीकला परंपरा का इसी तरह साकल्यपूर्वक टोटैलिटी के साथ विचार करना होगा। कला-सृजन भूचाल की तरह होता है। उसके दृश्य परिणाम भूसारपर महसूस होते हैं लेकिन उस भूचाल का विक्षोभ केंद्र और कहीं पर होता है। वह भूकवच के नीचे होता है। कलाकृति में दिखाई देनेवाले कलाधर्म का केंद्र भी ऐसा ही कलाकार की जीवन परंपरा में छिपा हुआ होता है। कलाकार के लिए मात्र समकालीन जीवन ही पर्याप्त नहीं होता। उसे दिक्कालातीत जीवन की जरूरत होती है। यह दिक्कालातीत जीवन उसे अपनी परंपरा और चिंतन संघर्ष से मिल जाता है।

जिव्या वारली चित्रकार था। वह चित्र बनाने को कहानी लिखना या कहानी बनाना कहा करता था। जिव्या को मराठी भाषा भी खास नहीं आती थी। फिर किताबें पढऩा, दर्शन वगैरह तो बहुत दूर की बात। आधुनिक दुनिया और ज्ञान के साधनों से यह चित्रकार पूरी तरह से अलिप्त और दूर था। वह अपने चित्रों में मनुष्य का संपूर्ण अस्तित्व, उसके जीवन के सारे मुकाम, उसके लोक-देवता, कथा कहानियाँ, श्रद्धा-अंधश्रद्धाओं का विश्व, उसके भयविषय यातुक्रिया आदि सब कुछ अंकित करता रहा। जिव्या अपनी ही जिंदगी में अलिप्त अकेलेपन से पेश आया। जिव्या के चित्रों में अनेक आकार और आकृतियाँ हैं। उनको लेकर उसके अपने खास अभिप्राय थे। उसके अनुसार विश्व में वर्तुल के दो सिरे कभी भी एक दूसरे से साक्षात् नहीं मिल पाते। वे सिर्फ द्विमिति में ही जोड़े जैसे प्रतीत होते हैं लेकिन वह दरअसल अधर में ही होता हैं। वह नागरी चित्रकारों के भौमितिक सिद्धांतों को भी नहीं मानता था।

जिव्या से मिलने गया था तब एक बड़े लंबे चौड़े चित्र पर उसका काम चल रहा था। टिपिकल चौराहे जैसा चित्र था वह। बॉबी, पेड़, जीवजंतु कई इष्टदेवता और भयपात्रों से भरपूर भरे हुए और करीब करीब पूर्ण होते हुए उस कैनवास पर ऊपर बाई ओर के कोने में शिव का चित्र था। उसके ऊपर और कुछ थोड़ी सी जगह बची हुई थी। जिव्या से पूछा, ''यह जगह खाली क्यों हैं?’’ उसने कहा, ''वहाँ आने वाला है ना अभी, वहाँ तूफान आने वाला है। तूफान का चित्र आने वाला है। महादेव से पहले तूफान था। फिर उसके बाद महादेव आया।’’ यह विश्व रचनाशास्त्र है! प्राकृतिक घटना, भावभावना और यातुक्रिया के साथ साथ 'कॉस्मोलॉजीका सोच जिव्या के चित्र में आया है। किसी भी प्रकार की औपचारिक ज्ञानसाधना के अभाव के बावजूद जिव्या में यह बात कहाँ से आई? जिव्या भी भीड़ में कभी शामिल नहीं हुआ अपने आप को अकेला रखता था। उसके बारे में जितने किस्से बतायें, कम ही होंगे।

'वारली चित्रकलाउसकी परंपरा से आई हुई है। वह आदि भारतीय अथवा वेदपूर्व देवताओं की परंपरा है। (अवैदिक शब्द को हेतुत: टाला गया है।) इसीलिए वह शिवपूजकों की परंपरा है लकिन उसके शिखरपर एक तूफान की यानी अमूर्त की, सृजनप्रक्रिया या सृजनशीलता की आवाजाही है। शायद वह महास्फोट-बिगबैंग की धारणा भी हो सकती है। शायद इस विश्वरचनाशास्त्र में उसके अत्युच्च स्थान पर ईश्वर का अभाव भी हो सकता है। उस परंपरा को वह अपने एकांत में सुनने, समझने और उसमें समरस होने का प्रयास करता है। समाज के इतिहास में सामूहिक अवचेतन के झरने निरंतर झरते रहते हैं। कलाकार उनको लक्ष्य करने और उसके साथ अपने आप को जोडऩे का प्रयास करता रहता है। आत्यंतिक बहुदैवतावादी परिवेश और प्राय: निरीश्वरवादी या एकेश्वरवादी विश्वरचनाशास्त्र इन दो विरोधी पाटों को संभालने की प्रक्रिया में वह घायल भी होता होगा। शायद उसे अपने आप को और अपने जीवनरस को इस बेहद यातुप्रधान अतिमूर्त श्रद्धा-अंधश्रद्धाओं के घिराव में अपने आदिवैदिक और निरीश्वरवादी दर्शन को पोसने में पैदा होने वाले विरोधों और तनावों से आत्मसंघर्ष करने में खर्च भी करना पड़ा होगा। बिना किन्हीं बाहरी साधनों का आधार लिये, अपने स्मृतिकोष, बचपन, भूगोल, अपनी जन्म परंपरा और सामूहिक अवचेतना की टोह लेते हुए जिव्या कहानियाँ और गाने 'लिखतारहता! अपने ही अवचेतन को संकेतमुक्त का जिव्या उसे कैनवासपर संकेतबद्ध करता गया। हमने उन्हें देखना है और अपने लिये संकेतमुक्त करना है। यही तो कला या कविता होती है। जिव्या का इस तरह किसी भी कथित प्रशिक्षण के बिना अपनी कहानी लिखने की प्रक्रिया में एक जीवनपरंपरा को संकेतमुक्त और संकेतबद्ध करना ही दरअसल 'क्रिप्टौलॉजीहै। इसी को काव्य कहते हैं। भेद सिर्फ माध्यम का है!

पिछली आधी शती में जिव्या ने अपने काम के माध्यम से एक स्वतंत्र कलाधर्म का निर्माण किया है। वह और उसकी नष्टप्राय परंपरा अपनी दुनिया की जैवविविधता का एक अहम हिस्सा है। कथित प्रगतिशील समाज अन्य अभाव पीडि़त समाजों को हतबल और हतोत्साहित कर या अन्य गलत तरीकों से प्रोत्साहित कर उन्हें अपनी विशिष्टताओं के साथ विनष्ट कर देते हैं। यही इस कला के बारे में भी हो रहा है।  जैवविविधता को मान्यता देते हुए जैव विविधता का स्वीकार करना ही दरअसल उदारवाद है और इसी में सही प्रगतिशीलता है। सुसंस्कृत होने का मतलब भी जैवविविधता का स्वीकार करना ही है और भविष्यत् में मानवजाति का प्रधान दर्शन भी यही होना चाहिए। जिव्या सोमा मशे अपने अंतराल में इतनी दृढ़ता और गहराई में बेभान हो गया था कि वह अपने आप वैश्विक बना हुआ है। अपने आपको लगातार इस तरह बेभान रखना वही है जिसे विदेशी भाषा में 'सॉलिट्यूडमें रखना कहा जाता है। यह आसान काम नहीं है। जिव्या ने इसे साधा इसीलिए वह इतना बड़ा हो गया। अपने जमाने में पैदा हुआ जिव्या सोमा मशे कई मायनों में श्रेष्ठ कलाधर्मी था कि उसके समय में जन्म लेने पर हम अपने को भाग्यशाली समझें!

 

 

 

निशिकांत ठकार, सोलापुर

सलील वाघ ने समकालीन मराठी कविता के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में अपनी पहचान बनाई है। अब तक उनके 7 कविता संकलन, गद्य का एक संकलन तथा शमशेर बहातुर सिंह की चुनी हुई कविताओं के मराठी अनुवाद का संकलन छप चुका है। कविताओं के अलावा वे कलाओं में गहरी आस्था रखनेवाले आलोचक तथा भाषा के अन्वेषणकर्ता है। पेशे से वे मुद्रण इंजीनियर है, पुणे में रहते हैं।

संपर्क - मो. 9422511238

 


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