पहल ९२ पर आसाम से आई प्रतिक्रिया
दिनांक - 23-05-2013
From: <smguwaraj@centralbank.co.in> श्री ज्ञानरंजन
संपादक.पहल
जबलपुर
आदरणीय ज्ञानजी,
नमस्कार. पहल के पुनर्प्रकाशन पर आभार एवं धन्यवाद. क्योंकि पिछले अंकों में प्रकाशित कई लेख मुझे प्रेरित करती रहीं है.
सीधी बात कहूं तो मैं एक आदिवासी समुदाय का सदस्य हूं अतः साहित्य में उनकी भी तस्वीरें देखने हमें इच्छा रहती है. जो मैं आपके पिछले अंकों में देख रहा था.
पहल के बंद होने पर दुखी था और पिछले कुछ महीनों से आपको पत्र लिखने की इच्छा हो रही थी. शायद इस पर आपको विश्वास न हो तो दिनकर कुमार, गुवाहाटी से पूछ सकते हैं.अक्सर हम पहल की चर्चा करते थे.
पहल के - अफ्रीका विशेषांक, इतिहास अंक, बांग्ला देश अंक आदि मेरे लिए प्रेरणा स्रोत रहीं हैं. जीतेन्र्द भाटिया के सदी के प्रश्न के अंतर्गत प्रकाशित लेख आदि काफी अच्छे लगे थे. हरिराम मीणा के इतिहास संबंधी लेख अच्छे थे. वाहरू सोनवणे जी का आदिवासी साहित्य पर लिखित लेख बहुत ही अच्छा था. आप अनदेखे य़ा उपेक्षित समुदाय के लोगों का भी ध्यान रखते हैं और उनकी आवाजों को लोगों के समक्ष दिल से और मेहनत से लाते हैं तो यह देखकर संतोष होता है कि चलों कहीं कोई तो है जो हम उपेक्षितों को भी जानना सुनना चाहता है और इससे हमारा मनोबल भी बढ़ता है. आपके इस प्रयास की जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है.
मोहन कुजूर का चाकू अरविंद चतुर्वेद की कहानी पहल में ही छपी थी. उस कहानी में आदिवासी पात्र को जिस तरह संघर्ष करते चित्रित किया गया था वह प्रेरक है. आज भी अनेक लोग आदिवासियों के बारे लिखते हैं लेकिन उनमें वह नजरिया नहीं होता जो आपके द्वारा संपादित पहल में छपकर आता है. जैसे इस बार भी ग्लेडसन डुंगडुंग के लिए उमा की कविता आपने छापी है.
साथ ही आसाम के उदय़भानु पांडेय का कार्बी परिवेश पर लिखी कहानी. ये सराहनीय हैं.
आप उपेक्षित आदिवासी भारत को आवाज देते हैं इसके लिए उन सभी की ओर से आभार जो यह पढ़ नहीं पाते हैं जान नहीं पाते हैं.
सादर
आपका
महादेव टोप्पो
09957567389, ईमेल पता - mahadevtoppo@gmail.com
गुवाहाटी |