अनीता वर्मा की कविताएं
अनीता वर्मा
कविता
रंग
मैं लौटती हूँ रंगों की दुनिया में तरल, पारदर्शी जलरंग एक कोमल नीला मुझे ले जाता हैं पिछले जन्मों की यात्रा पर गिरती रहती हैं पान की परतें मछलियों की मुलायम त्वचा की तरह एक के ऊपर गिरता है दूसरा जीवन एक नीला विस्तार मुझे पुकारता है किसी निर्वात में काँपता रहता है आकाश
मैं फिर लौटती हूँ एक चमकता लाल मेरे रुधिर में प्रकट होकर विस्फोट की तरह बहता हैं आतुर बाहें पकड़ लेती हैं जंगल का हरापन मैं आग जलाती हूँ और उसमें डालती हूँ लकडिय़ाँ, घासफूस और मरी हुई मनुष्यता ताकि यह पृथ्वी महफूज़ रह सके लाल पलाश खिलता है सूर्य सा मेरे हृदय में पिघलता लोहा मेरे सपने तराशता हैं थोड़ा लाल मैं बचाकर रखती हूँ जिससे जीवित रहे प्रेम
मैं फिर लौटती हूँ अपने प्रिय सफ़ेद रंग में सुगंध से भर उठती हैं देह नरगिस, बेली, जुही और शिउली के फूल खिल उठते हैं आत्मा की झिलमिलाहट में चाँदनी ओस पर गिरती हैं भर जाती है आँखों की कोरों में पानी और बर्फ़ को ओढ़कर मैं सोती हूँ एक सफ़ेद शांति में।
स्त्री का घर
यह स्त्री का घर है जो एक बाड़े में बदल चुका हैं उसकी शहतीरों से करुणा जैसा कुछ टपकता है जहाँ ताउम्र क़ैद है उसका जीवन
वह बेलती हैं अपना भाग्य उसे उलटती-पलटती हैं आग पर सेंकती हैं बारिश से बचाती है कपड़े अपने आँसुओं की भाप से गर्म करती है अपना घर
उसका बचपन बहुत पीछे छूट चुका हैं किसी नदी, जंगल या पेड़ के पास वहाँ उम्मीदों की कब्र हैं जिसके आस-पास उगती रहती है घास गिरते रहते हैं सूखे पत्ते लू में सरसराती हवा उसकी नमी सोखती रहती हैं एक पुराना प्रेम उसे रातों को पुकारता हैं जिसके लिए दरअसल बनी थी वह जिसके शब्द भी वह अब भूल चुकी हैं हवा के हाथ सहलाते हैं उसके पिघलते हुए दु:खों को उसकी आत्मा में कोई स्पन्दन नहीं हैं कोई छुअन भी नहीं
सब ठीक है
लालकिले से प्रधानमंत्री ने कहा देश में सब ठीक हैं
सदन में शोर ने कहा देश में सब ठीक है गोल मेज पर पार्टी अध्यक्ष बोले देश में सब ठीक हैं अपने कक्ष में मंत्री बोले देश में सब ठीक हैं दौरे से लौटते हुक्मरानों ने कहा देश में सब ठीक है मीडिया ने देश राग छेड़ा देश में सब ठीक है माँओं ने लोरी में गाया बाहर सब कुछ ठीक है ताकि बच्चे सो सकें चैन की नींद
इसी समय एक किसान आत्महत्या के बारे में सोच रहा था बेरोजगारों का एक जत्था नाप रहा था सड़कें
बच्चों के लिए
प्यारे बच्चों जब तुमने पहली बार इस संसार में आँखें खोलीं धरती हरी-भरी थी पेड़ों की डालियों ने हाथ बढ़ाकर तुम्हारा स्वागत किया हवा ने केश सहलाए फूलों ने दिए सुगंध के उपहार चिडिय़ों ने सिखाए तुम्हें वर्णमाला के अक्षर माँ की लोरियाँ प्रकृति का प्यार गा रही थीं उगते सूरज और सुरमई शाम ने तुम्हें गोद में खिलाया
तुम्हारे चंचल पैरों के नीचे एकत्र होती रहीं सूरज की किरणें नदियाँ तरंगित थीं तुम्हारी हँसी में फूलों के मुख से झांकती थी कोमलता चाँदनी किलकारियों में हँसती थी
बच्चों हमें क्षमा करना हम तुम्हें नहीं दे सके एक साफ-सुथरी पृथ्वी स्वच्छ हवा और हरे-भरे पेड़ हमने इतना धुँआ इकट्ठा कर दिया जो तुम्हारी सांसों को बोझल बनाने के लिए काफी था हम सभ्यता के शिखर पर थे बेचैन और अशान्त एक आभासी दुनिया में किसी नामासूम की चीज़ के पीछे भागते हुए
तुमने प्रवेश किया इस नई दुनिया में सीखे छल, व्यापार, घृणा और पाखंड के नए अक्षर तुम्हारी हंसी बताती हैं कि तुम्हें किसी चीज़ की परवाह नहीं फ़र्क नहीं पड़ता तुम्हें किसी दंड या अन्याय से किताबों में लिखीं तमाम बातें सिर्फ़ शब्द हैं उनकी अन्तरात्मा से तुम्हारी कोई पहचान नहीं हम सिखा नहीं पाए तुम्हें दया और करुणा के पाठ गिरते हुओं को उठाने की बात हम पैदा नहीं कर पाए प्रेम, क्षमा और विरोध की तासीर
उम्मीद एक ढ़ाढ़स की तर है कि तुम्हारे भीतर से चलकर आएगा एक मनुष्य और बचा लेगा इस पृथ्वी को
लेख
मैं आपको अपने प्रिय त्योहार का नाम नहीं बताऊँगा हालाँकि यह मेरा प्रिय त्यौहार है फिर भी मैं इसका नाम नहीं बताऊँगा लेकिन मैं आपको बताता हूँ इस दिन सुबह उठकर हम नए कपड़े पहनते हैं और मीठी सेवइयाँ खाते हैं शायद आपको पता चल रहा होगा कि मेरा प्रिय त्यौहार क्या है फिर भी मैं इसका नाम नहीं लूँगा अगर अपको कठिनाई हो तो मैं बता दूँ कि उस दिन सुबह हम एक जगह इकट्ठे होते हैं
अब तो आप जान की गए होंगे कि मेरा प्रिय त्योहार क्या है फिर भी अगर दिक्कत हो तो मैं बता दूँ कि उस दिन हमें ईदी भी मिलती है और अगर अब भी आपको समझ नहीं आया हो तो आप जान लें कि इसका नाम हैं ईद उल फितर
यह एक बारह साल के बच्चे का निबंध हैं जो छठी कक्षा में पढ़ता है जिसका नाम है मोहम्मद फुरक़ान उसके कोमल मन पर चुभी हुई हैं कितनी शहतीरें मुल्क की बदलती सोच से ख़ौफज़दा वह जो बता रहा हैं दरअसल उसे वह छिपाना चाहता हैं।
जन्म-25 जून। भागलपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी भाषा और साहित्य में बी.ए. आनर्स। एम.ए. में मानक अंकों के साथ प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान। राँची में निवास और अध्यापन। वर्ष 2003 में राजकमल प्रकाशन से पहला कविता संग्रह 'एक जन्म में सब’ प्रकाशित और चर्चित। विभिन्न भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, डच और जर्मन में कविताओं के अनुवाद। 'दस बरस अयोध्या के बाद कविता’ में कविताएं संकलित। 'एक जन्म में सब’ पर 2006 का बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान। 2008 में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित संग्रह 'रोशनी के रास्ते पर’ के लिए केदार सम्मान। शीला सिद्धांतकर सम्मान एवं शैलप्रिया सम्मान से सम्मानित।
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