पंकज चतुर्वेदी की कविताएं
पंकज चतुर्वेदी
कविता
स्वाधीन भारत में
सत्तर बरस के स्वाधीन भारत में मैं अपनी नागरिकता बदलना नहीं चाहता
किसी का दरवाज़ा खटखटाते डरता हूँ कि वह खोले और कहे : हिंदू राष्ट्र में आपका स्वागत है!
अब यह ऐसा समय है (कवि मंगलेश डबराल के लिए)
अब यह ऐसा समय है कि जो भी सच का तरफ़दार है वह सत्ता की सहमति से हत्यारों के रडार पर है या फिर गिरफ्तार है
चाँद कहता था
चाँद कहता था आज शाम: अपने सारे संताप घुला दो मेरी शीतलता में मेरी छाँव में सो रहो
मगर मैंने कहा : आऊँगा फिर कभी अभी उद्विग्न है हृदय आततायी की विजय-दुदंभि सुन पड़ती है
और मेरा देश उसके छल से अभिभूत हिंसकता पर मुग्ध किंतु अपने भवितव्य से अनजान है!
संघ की शरण जाता हूँ
कभी वह भी समय था जब राजकीय दमन से पीडि़त सांसारिक दुखों से आहत वर्ण-व्यवस्था से संतप्त तुम्हारे पूर्वज सत्य, शांति और मुक्ति की तलाश में कहते थे: संघ की शरण जाता हूँ
वह कोई और ही संघ था जो विराग से बना था अहिंसा, अपरिग्रह और सौहार्द से
चक्र उलटा घूमता है अब सत्ता की हिंस्र लालसा लिये हुए लोग कहते हैं: संघ की शरण जाता हूं
उम्मीद के चँदोवे तले
हमारे समय की यह नहीं है मुश्किल कि उम्मीद नहीं है बल्कि यह है कि हत्यारे से उम्मीद है
घर से दफ्तर दफ्तर से बाज़ार तक लोग उम्मीद करते हैं कि जो काम कोई नहीं कर पाया हत्यारा करेगा यहाँ तक कि माँ भी आ जाती है उम्मीद के इस चँदोवे तले
मगर जब उसे हत्यारे का इतिहास पता चलता है वह कहती कुछ नहीं उदास हो जाती है
शरणागत
हत्यारे की शरण जो गया है समाज वह अपने बचे रहने की अलिखित शर्त पर हत्या का समर्थक समाज है
नीचे जो बैठे थे
नीचे जो बैठे थे उनसे जूझता हुआ देर तक न्याय की उम्मीद में ऊपर जब पहुँचा हैरान रह गया :
मैंने कितना समय गँवा दिया यह जानने में कि नीचे जो थे आत्महीन और अशक्त थे
उनका अपराध सिर्फ यह था कि भय या प्रलोभनवश निरीह पशुओं की तरह- शीर्ष पर जो बैठा था- उसके मौन या मुखर आदेशों का पालन कर रहे थे
हत्यारे आ गये हैं
हत्यारे आ गये हैं समाचार माध्यमों पर अपना जुर्म कुबूल करते निर्दोष की हत्या के गौरव से भरे हुए
ख़ुफ़िया कैमरे के सामने अपने शौर्य का बखान करते पुलिस और राज्य के संरक्षण और आश्वस्ति और आह्लाद से रोमांचित
कैसे मारा था उस निरीह को जिसे बचानेवाला कोई न था कितनी देर तक कितने लोगों ने मिलकर और जब उसने पानी माँगा पानी नहीं दिया
हत्यारे आ गये हैं किसी एक सूबे तक सीमित नहीं बल्कि मुल्क में जगह-जगह बिखरे हुए उनके उन्मादी जत्थे हैं
तुम जिसे अपवाद समझते थे अब इस देश का नियम है
तुम कहाँ जाओगे इसे छोड़कर भीतर से कोई पुकार उठती है : आख़िर यही माटी है जिसमें तुमने जन्म लिया था और जिसे तुम प्यार करते हो
परिस्थिति का व्यंग्य
मुसलमान वैज्ञानिक चेतना से संपन्न हों प्रगतिशील और उदार हों ग़रीब और बेरोज़गार न रह जायें मुख्यधारा में आ जायें
परिस्थिति का व्यंग्य देखिये : यह सब वे लोग कह रहे हैं जो अपने पिछड़ेपन और कट्टरता के लिए विख्यात हैं
सपने में एक तस्वीर
सपने में एक तस्वीर से मैं विचलित हुआ
देश के सबसे बड़े पूँजीपति की अर्धांगिनी से हाथ मिलाते हुए राष्ट्र-नेता इतने गद्गद और उपकृत हैं गोया वह किसी साम्राज्य की महारानी हैं
उसी समय शाबाशी या कि अंतरंगता में राष्ट्र-नेता की पीठ पर पूँजीपति ने अपना हाथ रखा हुआ है
मैंने कहा: यह देश का अपमान है
ट्रेन में सफ़र कर रही एक स्त्री ने असहमति ज़ाहिर की : 'सो व्हाट? दे आर फ्रेंड्स!’
एक मुसाफ़िर ने एतराज़ किया : 'मैडम, सवाल दोस्ती का नहीं प्रोटोकॉल का है’
वह स्त्री चुप रह गयी मगर उस सन्नाटे में मैं सोचने लगा प्रोटोकॉल की बाबत नहीं यह कि जनता को इस दोस्ती की कितनी कीमत चुकानी होगी?
नया भारत
मनुष्य की हत्या हो रही है गुनाह यह है कि वह अल्पसंख्यक था और होरी की तरह अपने दरवाज़े गाय पालना चाहता था
बहुत भयावह और कारुणिक है यह सब यह जो नया राष्ट्र-राज्य बन रहा है जिसे 'नया भारत’ कहा गया है
दो चीज़ें विदा कर दी गयी हैं : शर्म और संवेदना दो चीज़ें रह गयी हैं : तकलीफ़ और दहशत!
हत्या एक न्याय है
जिसकी हत्या हुई है हत्यारे के साथ-साथ उस मृतक पर भी मुकद्दमा दर्ज करेगा राज्य
निर्दोष का जीवित रहना ही गुनाह है इसलिए हत्या एक न्याय है
और उसके बाद भी यह साबित किया जाना ज़रूरी है कि हत्या न्यायपूर्वक की गयी तभी वह संपूर्ण न्याय है
कविता की अमरता
उन्नीसवीं सदी में रहे श्रद्धाराम फिल्लौरी बाद में नास्तिक हो गये
पहले ज़रूर उन्होंने आरती लिखी थी जो आज भी बेहद लोकप्रिय है : ''ओम जय जगदीश हरे! भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे’’
कविता की अमरता में कवि का क्या कसूर?
राजा ने कहा
राजा ने कहा : 'मैं कभी छुट्टी नहीं लेता’ लोगों की ज़िंदगी तबाह करना एक बड़ा काम है
अवकाश पर जाने से कैसे होगा?
राजा का हुक्म
गिरफ्तार कर लाये गये अभियुक्त से राजा ने पूछा: प्रजा तो सदियों से दुख सहती आती है फिर तुम हमारी मुखालफ़त क्यों करते हो?
उसने जवाब दिया: महाराज, कुछ कहते नहीं बनता आप बहुत नाराज़ होंगे
नहीं, नहीं, जो सच है तुम निडर होकर कहो!
महाराज, दुख तो कम-ज्यादा हमेशा थे मगर अब जो दुख हैं आपकी सनक का नतीजा हैं इसलिए... इसलिए क्या?
अब रहने दें, राजन्! कहने से भी क्या प्रयोजन?
नहीं, नहीं, तुम कहो हम समस्या का समाधान करेंगे
अभियुक्त ने बात पूरी की: ''इसलिए हम शर्मिंदा हैं कि आप जैसा शख्स इस मुल्क का हाकिम है’’
तब क्या था राजा ने हुक्म दिया : इस आदमी को फाँसी पर चढ़ा दो उसने आगे कहा : और भी जो लोग शर्मिंदा हों उन्हें फाँसी दो
शर्म को मिटा दो!
फासीवाद जब बढ़ता है
फासीवाद जब बढ़ता है मित्र घटते जाते हैं
वे दैत्य के जबड़े के सामने नहीं पड़ोस में रहना चाहते हैं
मृत्यु से बचने के लिए ऐसी जगह की तलाश में जो जीते-जी मृत बनाये रखती है
क्या आप यकीन करेंगे?
बेरेटा एम-1934 9 एम.एम. की पिस्तौल थी जो सबसे पहले इटली में मुसोलिनी की सेना ने इस्तेमाल की थी
1941 में इटली जब ब्रिटेन से पराजित हुआ तो एक सैन्य अधिकारी तमगे के तौर पर इसे ग्वालियर ले आये
जहाँ सात साल बाद हिंदू महासभा के सहयोगियों की मार्फत नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे ने इसे एक हथियार विक्रेता से ख़रीदा और फिर गाँधी की हत्या की
बाद में हत्यारों ने इसका 7.65 एम.एम. का देशी संस्करण तैयार कर लिया
क्या आप यकीन करेंगे यह वही पिस्तौल है जिससे आज़ादी के सत्तर साल बाद लेखकों की हत्या की जा रही है
मैं एक जज था
मैं एक जज था
मेरे ज़िम्मे एक ही मुकद्दमा था जिसमें मुझे हत्यारे की बाबत फैसला देना था
मुझे मेरे सदर ने एक अरब रुपयों की पेशकश की मगर मैंने इनकार किया फिर दूर शहर एक शादी में मेरे दोस्त जज मुझे ले गये मुझे पता नहीं था वे अब मित्र नहीं हैं मेरी मृत्यु को सुनिश्चित करने के लिए नियुक्त किये गये अजनबी लोग हैं
मुझे कोई बीमारी नहीं था पर रिकॉर्ड में यही दर्ज है कि वहाँ रात में मुझे दिल का दौरा पड़ा
ऑटो स्टैंड नजदीक नहीं था फिर भी मुझे ऑटो से अस्पताल ले जाया या जहाँ ई.सी.जी. मशीन ख़राब थी इसलिए दूसरे अस्पताल के रास्ते में मेरी मौत हुई
मैं एक जज था जिसे उन लोगों ने महज़ शव में बदलकर एक ड्राइवर के हाथों मेरे घर भिजवा दिया
यह हत्या थी या हादसा कोई जाँच नहीं करेगा
अब इस वाकये को तीन बरस हो गये मुझे अपनी ही याद नहीं
तुम भी अपने ज़मीर के लिए इसे भूल जाना! देश काफी बदल गया है
जस्टिस लोया ने सबसे मर्मस्पर्शी बात अपने पिता से कही थी : 'मैं इस्तीफा दे दूँगा और गाँव जाकर खेती करूँगा मगर ग़लत फैसला नहीं सुनाऊँगा’
अगर आप भी ऐसा सोचते और कहते हैं तो आपको जीने नहीं दिया जायेगा
जो मृतक हैं वे नहीं चाहते कि उनके बीच कोई जीवित रहे
बीती आधी सदी में देश काफी बदल गया है
कुख्यात हत्यारा डोमाजी उस्ताद अब षड्यंत्रकारी मृत्यु-दल की शोभा-यात्रा में सिर्फ शामिल नहीं बल्कि वह नेतृत्व कर रहा है
संपर्क - मो. 9425614005, कानपुर
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