क्या तेरे ख़्वाब नए दौर से बावस्ता है
इन्दु श्रीवास्तव
नज़्म
कोई बतलाए कि इस नींद का मतलब क्या है क्या तेरे ख़्वाब नए दौर से बावस्ता हैं क्या तुझे ख़ौफ़ की चीखें सुनाई देती हैं घोर सुनसान सियह रात की जलती हुई आंखों की तरह चन्द मासूम किसानों की चिताएं दिखाई देती हैं क्या तू बलवाइयों दंगाइयों से वाक़िफ़ है क्या तू संसद के तमाशाइयों से वाक़िफ़ है क्या तुझे मौत के जंगल नज़र नहीं आते क्या तुझे खून के दलदल नज़र नहीं आते सर्द रातों की खुली बेलिबास सड़कों पे व$क्त खूंखार दरिन्दे की तरह फिरता है नदी के खौलते काले ज़हर से पानी में चांद-तारे भी सिगारों से नज़र आते है रौशनियों के शरारों से बिखर जाते हैं तंग बस्ती में सदा ख़ामुशी के रोने की निचोडऩे की कहीं अस्मतें डुबोने की भूख की गोद में बीमार थके जिस्मों की ख़ाक होते कहीं अंगार हुए जिस्मों की रात बेख़ौफ़ख़रीदार बन के आती है बेहयाई यहां खुद्दार बन के आती है तंग बस्ती से परे पायमाल बस्ती में बस्तियों में बड़ी बस्ती दलाल बस्ती में रौशनी की कटीली बाड़ की आराइश है दर्द के मजमें हैं और भूख की नूमाइश है धर्म के नाम पे गद्दारियों के मेले हैं लूटने लुटने की फ़नकारियों के मेले हैं छिपाने-छिपने के बेदारियों के मेले हैं तेरी नींदों के तले चांदनी के झुरमुट में बेखुदी ओस की बूंदों की तरह बजती है रात गाती है तो गाती ही चली जाती है ये इक जवान नदी है कहां ठहरती है ये नशा है खुमार है कि राज़ है क्या है कोई बतलाए कि इस नींद का मतलब क्या है क्या तेरे ख़्वाब नए दौर से बावस्ता हैं
2.
धुप अंधेरा है कि कंदील जलाओ कोई हाथ को हाथ नहीं सूझे है फ़िर न कहियो फ़िर न कहियो यहां से रास्ते सब सोए हैं दोस्त, पंछी, मकान धुंध में सब खोए हैं आंसुओं की तरह दिखती हैं यहां से नदियां यहां से खेत भी मरघट से नज़र आते हैं कल तलक जो यहां फूलों की गज़ल गाते थे साथ मदहोश हवाओं के सुर मिलाते थे कारखानों के धुएं में फ़ना हुए मौसम जैसे सदमे में गए बेजुबां हुए मौसम बूढ़े खेतों की थुलथुली उदास मेड़ों पे कहीं सूखे तो कहीं अधजले से पेड़ों पे फूल-पत्तों की जगह रस्सियां लटकती हैं यां वे वां बेसबब उम्मीद की गठरी बांधे कामगारों की कई बस्तियां भटकती हैं कोई रोई कोई फ़रियाद करे कौन कितना किसी को याद करे तुम जहां पर हो वहीं से बटोर कर तिनके सर्द सांसों में दबी आग जलाओ तो सही दिल के तारों में छिपा राग जगाओ तो सही घुप अंधेरा है कि कंदील जलाओ कोई
3.
दोस्त कहते हैं कोई चांदनी की न•म लिखो कुछ कते इश्क के दरया के कुछ कहकहों की बारिश के जुगनुओं की बस्ती के, गुलाबी झरनों के, रूप के तहकानों के चांद की फरमाइश के सात सहराओं को ढक दो, सजा दो सतरंगी धनक के रेशमी गलीचे से रेत के दरयाओं में तैरा दो कांच की नावें नाविकों से कहो साहिल को अलविदा कह दें दोस्त कहते हैं कोई मयकशी की न•म लिखो नशे की धुंध में छिप जाओ यूं कि दर्द कोई, ढूंढ ही न पाए तुम्हें जीत लो भूख के किले हरा दो तश्नगी को, दूध की नदियों का वास्ता दे कर दोस्त कहते हैं कोई बेखुदी की न•म लिखो गलीच बस्तियों से फेर लो नज़रें जले घरों को न तरज़ीह दो खेत, बस्ती, किसान खप गए जो गर्दिश में जो किए कत्ल घर जलाए दहशतगर्दों ने पालने को कहो उनसे कबूतर, फाख्ते गौरैया इल्म की तालीम दो, पूजा हवन की बात करो जो भी उजड़ा है संवरने उसे ख़्वाबों में उगने लिखने दो हरी कोपलें तसव्वुर में भूल कर शिकवे, गिले कह भी दो अब अलविदा तबाही को दोस्त कहते हैं कि ज़िन्दादिली की न•म लिखो
इन्दु श्रीवास्तव पहल की सुपरिचित शायरा है। मो. 9425357858, जबलपुर
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