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जनवरी 2017

इस्माईल मेरठी की रचनाएं

इस्माईल मेरठी

उर्दू रजिस्टर





अच्छा ज़माना आने वाला है
(इस्माईल मेरठी की यह नज़्म, आज सौ बरस बाद एक अलहिदा अंदाज़ में दौर हाज़िरा के एक सियासी जुमले का अवामी जवाब बनकर खड़ी हो जाती है।)

तनेगा मसर्रत का अब शामियाना (मसर्रत - ख़ुशी)
बजेगा मुहब्बत का नक्कारख़ाना
हिमायत का गाएंगे मिलकर तराना
करो सब्र आता है अच्छा ज़माना

न हम रोशनी दिन की देखेंगे लेकिन
चमक अपनी दिखलाएंगे अब भले दिन
रुकेगा न आलम तरक़्क़ी किए बिन
करो सब्र आता है अच्छा ज़माना

हर इक तोप सच की मददगार होगी
खयालात की तेज़ तलवार होगी
इसी पर फ़क़त जीत और हार होगी
करो सब्र आता है अच्छा ज़माना

ज़बाने-क़लम सैफ़ पर होगी ग़ालिब (सैफ़- तलवार)
दबेंगे न ताकत से फिर हक़ के तालिब (हक़ के तालिब- हक़ मांगने वाले) 
कि महकूमे-हक़ होगा दुनिया का तालिब (महकूम - प्रजा)
करो सब्र आता है अच्छा ज़माना

बच्चा और जुगनू
सुनाऊं तुम्हें बात इक रात की
कि वह रात अंधेरी थी बरसात की
चमकने से जुगनू के था इक समां
हवा पे उड़ें जैसे चिंगारियां
पड़ी एक बच्चे की उस पर नज़र
पकड़ ही लिया एक को दौड़कर
चमकदार कीड़ा जो भाया उसे
तो टोपी में झटपट छुपाया उसे
वह झमझम चमकता इधर से उधर
फिरा, कोई रस्ता न पाया मगर
तो ग़मग़ीन क़ैदी ने की इल्तिजा
कि छोटे शिकारी मुझे कर रिहा
ख़ुदा के लिए छोड़ दे, छोड़ दे
मेरे क़ैद के जाल को तोड़ दे
बच्चा 
करूंगा न आज़ाद उस वक़्त तक
कि मैं देख लूं दिन में तेरी चमक
जुगनू
चमक मेरी दिन में न देखोगे तुम
उजाले में हो जाए वह तो गुम
बच्चा 
अरे छोटे कीड़े न दे वहम मुझे
कि है वाक़फ़ियत अभी कम मुझे
उजाले में दिन के खुलेगा ये हाल
कि इतने से कीड़े में है क्या कमाल
धुआं है, न शोला, न गर्मी, न आंच
चमके के तेरे करूंगा मैं जांच
 जुगनू
ये क़ुदरत की कारीगरी है जनाब
कि ज़र्रे को जूं चमकाए आफ़ताब
मुझे दी है इस वास्ते ये चमक
कि तुम देखकर मुझको जाओ ठिठक
न अल्हड़पने से करो पाएमाल (रौंदना / नष्ट करना)
संभल कर चलो आदमी की सी चाल।


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